Shri Yogeshvari Devi Kavach ( Devi kawach ), Ambajogai (श्री योगेश्वरी देवी कवच)

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Yogeshwari devi Kavach Image, Ambajogai




Shri Yogeshwari Devi Kavach

( श्री योगेश्वरी देवी कवच )

  • श्री योगेश्वरी देवी कवच (Kavach) अतिशय पवित्र असे हे देवी कवच (devi Kavach) स्नानानंतर देवघर व देवालयात याचे नित्य पठण करावे.  नवरात्र (Navratri) पठण केले असता भक्ताच्या मानतील सर्व मनोकामना पूर्ण होतात.  त्याला इच्छित फळ मिळते.  असे हे पुण्यदाई  योगेश्वरी देवी कवच (Yogeshwari devi Kavach ) आहे.      
 



|| श्री गणेशाय नमः || श्री गणेशाते वंदुनी | शारदां-चरणां नमुनी | श्री योगेश्वरी कवचवर्णुनी | मती द्यावी विनवितो ||१ || कैलाशशिखरी पवित्र || उमामहेश संवाद करित | जगत्कल्यानाचे मंत्र | सहज बोल बोलती ||२ || महेश्वराते म्हणे उमा | विज्ञानाचा काथीला महिमा | योगीसाधाकसाधुविश्रामा | मंत्रतंत्र उपदेशिले ||३ || परी योगेश्वरी कवच श्रवण | कारवाया उत्सुक मम मन | मजवरी होऊनी सकरून | प्रिय करावे वल्लभा ||४ || महेश्वर निजशक्तीसी | सांगती योगेश्वरी कवचासी | देवर्षी पूजिती महाविद्देसी | देव जिते सेविती ||५ || विधि करी सृजनाते | पोषण करी हरी तयाते | शंभू करी संहाराते | त्रैलोक्यही ज्या बळे ||६ || ते रहस्य सर्व योगांचे | कवच श्री योगेश्वरीचे | कथिता महेश्वर उमेचे | चित्त एकाग्र होतसे ||७ || श्रीयोगेश्वरी कवच | द्रष्टा ऋषी ‘महादेव’ साच | अनुष्टुप संस्कृत वच | छंदोमय शिववचन ||८ || ऐं ऱ्हीं श्रीं म्हणतां | त्रिविध रहस्य ये हाता | कवच न्यास सांगतां | स्वये शंभू डोलती ||९ || मस्तकीं तो महादेव | प्रकट करो शिवभाव | योगेश्वरी ती दिव्य | ओविरूपे मुखी वसो ||१० || ऐं’ बीज दक्षिणस्तन | ‘ऱ्हीं’ शक्ति वामस्तन | ‘श्रीं’ कलिक नाभिस्तान | अंगुष्ठ तेथें ‘ऐं’ बीज ||११ || तर्जनिवरी ‘ऱ्हीं’
बीज | मध्यमेवरी ‘श्रीं’ बीज | ‘स्वाहाकार’ शीर्षी निज | रहस्यमय होतसे ||१२ || शिखास्थानी ‘वषट्कार’ | ‘ऐं’ अनामिकेसी साचार | कवचाकारणे ‘हुंकार’ | म्हणावा तो वंदुनी ||१३ || कनिष्ठिकेवरी ऱ्हींकार | तिन्ही नेत्रीं वषट्कार | अस्तोर्थे तो ‘फट्’कार | करतलपृष्ठी स्थापावा ||१४ || स्थापुनिया बिजामंत्राते | पुनः वंदितो देवीते | मनोमय चेतनाशक्तीते | ध्यातसे मी यापरी ||१५ || खड्ग आणि मुसळ करीं | पानपात्र लांगलही धरी | रक्तचामुंडा योगेश्वरी | सर्वकाळी विजयी हो ||१६ || पृथ्विरूपी ‘लं’ गंधलेप | आकाश ‘हं’ वाहुं पुष्प | वायुरूप ‘यं’ हाचि धूप | ‘रं’ दीप तेजाचा ||१७ || ‘वं’ नामे अमृताचा | नैवेद्य अर्पियला साचा | ‘सं’ हाची सर्वात्मकाचा | परम उपचार तांबुल ||१८ ||
श्रीयोगेश्वरी प्रसन्न | होवोनिया करी रक्षण | बालक मी अनन्यशरण | नखशिखान्त शक्ती दे ||१९ ||  मस्तक रक्षो “शांकरी’ | उत्तमांग ‘नारायणी’ सावरी | ललाटाचे रक्षण करी | ‘ऐंकाररुपिणी’ ||२० || ‘ऱ्हीं कार’ तो दक्षिण नयन ‘श्रींकार’ तो वाम नयन | दोन्ही नेत्रांचे करी रक्षण | शक्तिरूपे सर्वथा ||२१ || ‘परास्मृता’ ‘नारसिंही’ | वाम दक्षिण | कर दोन्ही | ‘खडीगनी’ नासिकामुळही | रक्षण करी सर्वदा ||२२ || नासिकेते रक्षी ‘मानिनी’ | कपोलद्वय ‘भूत-संहा रिणी’ | ‘अंबिके’ येवोनिया वदनी | सांभाळ करी सर्वदा ||२३ || चिबुकासी टी ‘भ्रामरी’ | ‘योगिनी’ सदा रक्षण करी | ‘चंडिका’ कंठाते सावरी | हृदया ‘विन्ध्यवासिनी’ ||२४ || उदर ‘गिरीजा’ संरक्षित | नाभि ‘भोगिनी’ सुरक्षित | ‘शुंभिनी’ कडूनि पृष्ठप्रांत | रक्षण होई सर्वदा ||२५ || ‘शुलधारिणी’ ‘योगिनी’ | स्कंध हस्त ठेवी रक्षुनी | ‘कंबुकंठी’राही रक्षणी | गल्याचीया मंम सदा ||२६ || ‘सुंदरी’ कटी ते रक्षिता | ‘गुह्येश्वरी’ गुह्य रक्षिता | अपानस्थान सांभाळीत | ‘कुंजिका’ ती शांभवी ||२७ || अंकासी ‘भद्रकाली’ राखण | ‘कालिका’ करी जानुरक्षण | जंघा गुल्फ सांभाळून | ‘महाभीमा’ ‘शूलिनी’ ||२८ || चरण रक्षीतसे ‘श्रीधरी’ | ‘शोगिनी’ सर्व शारिरी | सप्तधातुस्थाने सावरी | ‘भैरवी’ ती सदोदित ||२९ || ‘चामुंडा’ वाराही कौमारी | जयश्री मंगला माहेश्वरी | ‘सर्वाद्या वैष्णवी’ रक्षण करी | सवा दिशांनी मज सदा ||३० || ऐसे दिव्या कवचस्तवन | षण्मास करिता पठन | सिद्धी करी प्रदान | शिव म्हणती उमेसी ||३१ || कवचस्मरणे जयप्राप्ती | राजद्वारी कामे साधती | भूतप्रेतभये नासती | बंधविमोचन होतसे | |३२ || रणी शत्रूवरी धावतां | साधुनी मुहूर्त एकांता | कवच पठण पारितां | जय मिळे संगरी ||३३ || महादुःखे नष्ट होती | सिद्धी स्वये सेविती | संपदा सर्व भेटती | किर्तीसाहित येउनी ||३४ || दुरित जाई देशांतराते | वृद्धी होई धर्मबुद्धीते | भक्त मिळावी कल्यानाते | संशय नसो सर्वथा ||३५ || लिहूनी ठेविता संपूटांत | बांधीतां ते कंठांत | पावित्र्याचे रक्षण करित | मंत्र सिद्ध होतसे ||३६ || धनसुतविद्या संपदा | सुखभोग मिळती सदा | मंत्र साधना पुण्यप्रदा | कवचपठणे होतसे ||३७ || एकशतोत्तर अष्ट | पुर्नाकरितां याचा पाठ | पुरुषार्थ होती प्राप्त | योगेश्वरी – कृपेने ||३८ || विपत्ती जाती विरुनी | ब्राम्हस्त्रही जाई परतुनी | अज्ञान तम निरसुनी | सर्वज्ञान लाभतसे ||३९ || रुद्रयामल तंत्रात | बहुरुपाष्टक प्रस्तावांत | उमा-महेश्वर संवाद | अद्भूत तो चालला ||४० || शिव म्हणे उमे जाण | न करिता कवच पठन | याचे रहस्य न कळून | तरी व्यर्थ साधना ||४१ || योगाभ्यास अति केला | शतलक्षहि जप केला | तरी याविना व्यर्थ गेला | ऐसे थोर कवच हे ||४२ || हे कवचरहस्य पठन | सर्व कर्मारंभी करून | निजपरहित – रक्षण | आर्तत्राणही करावे ||४३ || सांजसकाळी शांतपणाने | म्हणातां हे भक्तजने | योगेश्वरी क्षेम करी तेणे | जगदंबा माउली ||४४ || ऐसी मराठी ओवीरूपांत | रचना करुनी अर्पित | दिवाकर अनंतसुत | योगेश्वरी चरणासी ||४५ || योगेश्वरी कवच संपूर्ण ||

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